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  • बाल विकास:(Child Development)

बाल विकास (या बच्चे का विकास), बच्चे के जन्म से लेकर किशोरावस्था के अंत तक उनमें होने वाले जैविक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों को कहते हैं।
ये विकासात्मक परिवर्तन काफी हद तक आनुवंशिक कारकों और घटनाओं से प्रभावित हो सकते हैं इसलिए आनुवंशिकी और जन्म पूर्व  विकास को आम तौर पर बच्चे के विकास के अध्ययन के हिस्से के रूप में शामिल किया जाता है।

  • बाल मनोविज्ञान की परिभाषाएं

क्रो एवं क्रो के अनुसार - गर्भकाल के प्रारंभ से किशोरावस्था तक की अवस्था का अध्ययन है ।
बर्क के अनुसार - जन्म पूर्व अवस्था से परिपक्व अवस्था तक का अध्ययन ।
जेम्स ड्रेवर के अनुसार- जन्म से परिपक्व अवस्था तक का अध्ययन बाल मनोविज्ञान में होता है ।

  • बाल विज्ञान की खासियत क्या है बाल विकास की अवस्थाओं में-

·     प्रगतिशीलता
·     क्रमबद्धता
·     सु-सम्बद्धता

  • ऐतिहासिक पहलू

·     बाल मनोविज्ञान की इस शाखा का प्रतिपादक पेस्टोलॉजी (1774) को माना जाता है । (पेस्टोलॉजी ने बेबी बायोग्राफी मेथड से अध्ययन किया)
·     भारत में बाल विकास का अध्ययन 1930 से प्रारंभ माना जाता है (गिजुभाई बधेका के प्रयासों से)

  • बाल विकास से संबंधित महत्वपूर्ण मान्यताएं -

1.  जैविक परिपक्वता की मान्यताएं    प्रमुख प्रतिपादक : - G. Stanley Hall , Arnold Gesell
इस मान्यता के अनुसार विकास मुख्यतः आनुवंशिकता से प्रभावित है तथा व्यवहार प्राकृतिक नियमों द्वारा तय होता है

2.  व्यवहारवादी सिद्धांत की मान्यताएं   प्रमुख प्रतिपादक : - जे बी वाटसन , बी एफ स्किनर
 इस मान्यता के अनुसार पर्यावरण के कारक पालक के विकास में सहायक हैं अर्थात विकास में इंद्रिय अनुभूतियों का गहरा प्रभाव पड़ता है

3.  संज्ञानात्मक विकास संबंधी मान्यता  प्रमुख प्रतिपादक : - जीन प्याजे
इस विचारधारा के अनुसार बच्चों की अपनी एक अहम भूमिका होती है तथा उनके विकास को सर्वाधिक प्रभावित उनकी मानसिक क्रिया करती हैं बच्चे के विकास की अवधि के बारे में तरह-तरह की परिभाषाएँ दी जाती हैं क्योंकि प्रत्येक अवधि के शुरू और अंत के बारे में निरंतर व्यक्तिगत मतभेद रहा है।

4.  सामाजिक सांस्कृतिक विकास संबंधी मान्यताएं  प्रमुख प्रतिपादक : - लेव वाईगोतस्की
यह बाल मनोविज्ञान के क्षेत्र की नवीनतम विचारधारा है जो बाल विकास के तीन पक्षों की चर्चा करती है तथा इन तीनों का केंद्र बिंदु सीखने की प्रक्रिया को बताया है
          I.         सीखना एक सामाजिक व सांस्कृतिक प्रक्रिया है
        II.         सीखना सार्थक व उद्देश्यपूर्ण क्रियाओं की हिस्सेदारी से होता है
     III.         समय के साथ सामाजिक व सांस्कृतिक बदलाव सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं

  • बाल विकास के सिद्धांत

1.  निरंतरता का सिद्धांत : विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो गर्भधारण से म्रत्यु पर्यंत चलता है

2. विकास सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है:  विकास क्रम का व्यवहार सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है अर्थात् मनुष्य के विकास के सभी क्षेत्रों में सामान्य प्रतिक्रिया होती है उसके बाद विशिष्ट रूप धारण करती है. जैसे एक नवजात शिशु प्रारम्भ में एक समय में अपने पूरे शरीर को चलाता है फिर धीरे-धीरे विशिष्ट अंगों का उपयोग करने लगता है.

3. परस्पर सम्बन्ध का सिद्धांत : किशोरावस्था के दौरान शरीर के साथ साथ संवेगात्मक , सामाजिक , संज्ञानात्मक एवं क्रियात्मकता भी तेजी से होता है . 

4. विकास अवस्थाओं के अनुसार होता है:  सामान्य रूप में देखने पर एसा लगता है कि बालक का विकास रुक-रुक कर हो रहा है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता. उदहारण के लिए जब बालक के दूध के दांत निकलते हैं तप ऐसा लगता है कि एकाएक निकल गया परन्तु इसकी नीव गर्भावस्था के पांचवे माह में पद जाती है और 5-6 महीने में आती है

5. विकास एक सतत प्रक्रिया है: विकास एक सतत प्रक्रिया है, मनुष्य के जीवन में यह चलता रहता है. विकास की गति कभी तीव्र या अमंद हो सकती है. मनुष्य में गुणों का विकास यकायक नहीं होता. जैसे शारीरिक विकास गर्भावस्था से लेकर परिपक्वावस्था तक निरंतर चलता रहता है. परन्तु आगे चलकर बालक उठने-बैठने, चलने फिरने और दौड़ने भागने लगता है.

6. बालक के विभिन्न गुण परस्पर सम्बंधित होते हैं:  बालक के विकास का विभिन्न स्वरूप परस्पर सम्बंधित होते हैं. एक गुण का विकास जिस प्रकार हो रा है अन्य गुण भी उसी अनुपात में विकसित होंगे. उदहारण के लिए जिस बालक में शारीरिक क्रियाएँ जल्दी होती है वह शीघ्रता से बोलने भी लगता है जिससे उसके भीतर सामाजिकता का विकास तेजी से होता है. इसके विपरीत जिन बालकों के शारीरिक विकास की गति मंद होती है उनमें मानसिक तथा अन्य विकास भी देर से होता है.

7. विभिन्न अंगों के विकास की गति में भिन्नता पाई जाती है:  शरीर के विभिन्न अंगों के विकास की दर एक समान नहीं होता इनके विकास की गति में भिन्नता पाई जाती है. शरीर के कुछ अंग तेज गति से बढ़ते है ओर कुछ मंद गति से जैसे- मनुष्य की 6 वर्ष की आयु तक मस्तिष्क विकसित होकर लगभग पूर्ण रूप धारण कर लेता है, जबकि मनुष्य के हाथ, पैर, नाक मुंह, का विकास किशोरावस्था तक पूरा हो जाता है.

8. विकास की गति एक समान नहीं होती: मनुष्य के विकास का क्रम एक समान हो सकता है, किन्तु विकास की गति एक समान नहीं होती जैसे- शैशवावस्था और किशोरावस्था में बालक के विकास की गति तीव्र होती है लेकिन आगे जाकर मंद हो जाती है और प्रौढ़ावस्था के बाद रुक जाती है. पुनः बालक ओर बालिकाओं के विकास की गति में भी अंतर होता है.

9. विकास की प्रक्रिया का एकीकरण होता है: विकास की प्रक्रिया एकीकरण के सिद्धांत का पालन करती है. इसके अनुसार बालक पहले अपने सम्पूर्ण अंग को और फिर अंग के भागों को चलाना सीखता है बाद में वह इन भागों का एकीकरण करना सीखता है.

10.              विकास का एक निश्चित प्रतिरूप होता है: मनुष्य के विकास का एक क्रम में होता है और विकास की गति का प्रतिमान भी समान रहता है. सम्पूर्ण विश्व में सभी सामान्य बालकों का गर्भावस्था या जन्म के बाद विकास का क्रम सिर से पैर की ओर होता है. गेसेल और हरलॉक ने इस सिद्धांत की पुष्टि की है.

11.                विकास बहुआयामी होता है : इसका  मतलब है की विकास कुछ छेत्रों में अधिक व कुछ में कम होता है . 

12.               विकास बहुत ही लचीला होता है : इसका मतलब यह है की विकास किसी व्यक्ति अपनी पिछली कक्छा की विकास दर की तुलना में किसी विशेष छेत्र में विशेष योग्यता प्राप्त कर लेता है यह उसके परिवेश आदि पर निर्भर करता है .

13.               विकास प्रासंगिक हो सकता है : विकास एतिहासिक ,परिवेशीय , सामाजिक - संस्कृतिक घटकों से प्रभावित होता है .  

14.              व्यक्तिक अंतर का सिद्धांत : विकासात्मक परिवर्तनों की दर में व्यक्तिगत अंतर हो सकता है और यह अनुवंशकीय घटकों व सामाजिक परिवेश पर निर्भर करता है . जैसे एक 3 वर्ष का बालक औसत 3 शब्दों के वाक्य आसानी से बोल लेता है वन्ही कुछ ऐसे भी बच्चे होतें है जो यह योग्यता 2 वर्ष की आयु में ही प्राप्त कर लेतें है तो कही ऐसे भी बचें होते है यो 4 वर्ष की आयु में भी वाक्य बोलने में कठिनाई महसूस करतें है . वृद्धि एवं विकास की गति की दर एक समान नहीं होती .

15.               विकास की प्रक्रिया एकीकरण के सिद्धांत का पालन करती हैं .

16.              वृद्धि एवं विकास की क्रिया  वंशानुक्रम एवं वातावरण का परिणाम है 

  • विकास की विभिन्न अवस्थाएँ

वैसे तो बाल विकास की प्रक्रिया भुर्णावस्था से जीवन भर चलती है फिर भी मनोवैज्ञानिकों ने बालक की अवस्थाओं को विभाजित करने का प्रयत्न किया  कुछ आयु-संबंधी विकास अवधियों और निर्दिष्ट अंतरालों के उदाहरण इस प्रकार हैं:
·     शैशवावस्था (उम्र 1 से 6  वर्ष)  (शैशवकाल - 1 से 3 वर्ष तक और पूर्व बाल्यावस्था 3 से 6 वर्ष तक)
·     बाल्यावस्था (उम्र 6 से 13 वर्ष)
·     किशोरावस्था (उम्र 13 से 20 वर्ष)



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