परिचय व प्रसिद्धि
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विद्यापति चौदहवीं शताब्दी के मैथिल कवि थे, जिन्हें ‘मैथिल कोकिल’ कहा जाता है।
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सोलहवीं शताब्दी के अंत तक उनकी कीर्ति समस्त पूर्वी भारत में फैल चुकी थी।
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उनके पदों का अनुकरण अनेक कवियों ने किया, पर 20वीं शताब्दी से पूर्व सभी पदों का कोई संपूर्ण संकलन नहीं था।
जीवन व कृतियाँ
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जन्मस्थान: बिहार, दरभंगा ज़िला, विपसी गाँव।
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गुरु: पंडित हरि मिश्र।
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भाषाएँ: संस्कृत, अवहट्ठ, मैथिली।
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संस्कृत रचनाएँ: शैव सर्वस्व सार, गंगा वाक्यावली, दुर्गाभक्त तरंगिणी, भू परिक्रमा, दान-वाक्यावली, पुरुष परीक्षा, विभाग सार, लिखनावली, गया पत्तलक-वर्ण कृत्य।
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अवहट्ठ रचनाएँ: कीर्तिलता (कीर्तिसिंह की वीरता), कीर्तिपताका (शिवसिंह की वीरता व उदारता)।
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मिश्रित रचना: गोरक्ष विजय — गद्य संस्कृत में, पद्य मैथिली में।
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प्रमुख कृति: मैथिली पदावली।
राजाश्रय और काव्य-प्रकार
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तिरहुत के राजा शिवसिंह व कीर्तिसिंह के आश्रित कवि।
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पदावली के आधार पर विभिन्न श्रेणियाँ— शृंगारी, भक्त, रहस्यवादी।
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विद्वानों के मत भिन्न: ब्रजनंदन सहाय, श्यामसुन्दर दास, हजारीप्रसाद द्विवेदी—भक्त; ग्रियर्सन, नागेन्द्रनाथ गुप्त, जनार्दन मिश्र—रहस्यवादी; हरप्रसाद शास्त्री, आचार्य शुक्ल आदि—शृंगारिक कवि।
पदावली का संरक्षण व संकलन
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बंगाल की श्रुति परंपरा व गौड़ीय वैष्णवों द्वारा संरक्षण।
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प्रमुख प्राचीन संकलन: विश्वनाथ चक्रवर्ती की क्षणदागीत चिंतामणि (1705 ई.), राधामोहन अंकुर का पदामृत समुद्र (18वीं सदी)।
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19वीं–20वीं सदी में संकलन: शारदाचरण मित्र, ग्रियर्सन (82 पद), नगेंद्रनाथ गुप्त, अमूल्य विद्याभूषण, खगेंद्रनाथ मित्र, रामवृक्ष बेनीपुरी, विमानबिहारी मजूमदार, सुभद्र झा (The Songs of Vidyapati, 1954)।
विषय-वस्तु व भाव-प्रकार
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प्रमुख विषय: राधा–कृष्ण प्रेम, प्रकृति, देव-स्तुति (विशेषकर शिव–उमा), व्यंग्य, हास-परिहास।
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भक्तिकाल की परंपरा के अनुसार आत्म-दैन्य का वर्णन।
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राधा–कृष्ण प्रेम में नख-शिख वर्णन, प्रणय, मान, राग, अनुराग, विरह-मिलन आदि अवस्थाओं का चित्रण।
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निराला ने पदों की मादकता को ‘नागिन की लहर’ कहा।
काव्य-विशेषताएँ
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शृंगारिकता व जीवंत यथार्थ का समावेश — राधा-कृष्ण के प्रेम में समाज, परिवार, लज्जा-संकोच आदि की उपस्थिति।
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लोकजीवन से गहरा संबंध — लोकोक्ति, रीति-रिवाज, अंधविश्वास, मुहावरे का प्रयोग।
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प्रकृति का अलंकारिक चित्रण — विशेषकर वसंत ऋतु का प्रिय सहचर रूप।
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बारहमासा परंपरा का पालन (आषाढ़ से आरंभ, विरह-वर्णन)।
गीत-रचना की विशेषताएँ
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रागात्मकता, मार्मिकता और लोकधुनों का प्रयोग।
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सहजता व स्वाभाविकता।
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प्राचीन मैथिली भाषा में रचना, जिस पर ब्रजभाषा का प्रभाव — ब्रजबुलि का प्राचीन रूप।
उपाधियाँ और योगदान
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उपाधियाँ: ‘अभिनव जयदेव’, ‘कवि शेखर’, ‘कवि कंठहार’, ‘खेलन कवि’, ‘पंचानन’, ‘मैथिल कोकिल’।
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हिंदी कविता में पद, गीत और शृंगार परंपरा की आरंभिक कड़ी; इनके विकास से हिंदी कविता समृद्ध हुई।