विष्णु सूक्त
ऋषि - दीर्घतमा, निवास स्थान - द्युस्थानीय, सूक्त संख्या
- 5
निरुक्त के अनुसार विष्णु शब्द विष् धातु से बनता है जिसका
अर्थ है 'व्यापनशील होना', लोकों में अपनी किरणों को फैलाने वाला। इसका मूल धातु 'विश्'
भी कहा गया है, जिससे विष्णु शब्द का एक अन्य अर्थ क्रियाशील होना भी है। यह सभी देवताओं
में अधिक क्रियाशील है तथा उनकी सहायता भी करता है। ‘वृत्र’ वध के समय विष्णु ने इन्द्र
की सहायता की थी। ऋग्वेद में विष्णु द्वारा तीन पगों में ब्रह्माण्ड को नापने का महत्वपूर्ण
कार्य का वर्णन मिलता है। विष्णु के लिए ‘त्रिविक्रम’ शब्द का प्रयोग भी मिलता है जिसका
अर्थ है सूर्य रूप विष्णु पृथ्वीलोक, द्युलोक और अंतरिक्ष में अपनी किरणों का प्रसार
करते हैं तथा उनके प्रकाश से जरायुज, अण्डज और उद्भिज सभी प्रकार की सृष्टि होती है।
विष्णु शरीर का अधिष्ठातृ देवता है। उनका उच्चलोक परमपद है जहाँ मधु उत्सव है। पक्षियों
में ‘गरुड’ इनका वाहन है। विष्णु को उरुक्रम, उरगाय भीम गिरिष्ठा, वृष्ण, गिरिजा, गिरिक्षत,
सहीयान् नामों से सम्बोधित किया गया है।